"नटखट बच्चे"
"नटखट बच्चे"
बच्चे होते नादान
बच्चे होते अनजान
सब कुछ सच बोलते
इनके अंदर होता भगवान।
ढेरों शरारत करते हैं
ये कभी ना थकते हैं
कोई रोके इनका रास्ता
गुस्सा भी तुरंत हो जाते हैं।
इनको चाहिये रोज़ पकवान
चाहे सुबह हो या शाम
थोड़ा-थोड़ा खाते रहते
कोई कहता दाऊ
कोई कहता घनश्याम।
बहल जाते छोटी-छोटी चीजों से
ये अपना हर पल जीते मौजों से
तरह-तरह के खिलौने मांगते
ये खुश हो जाते गुड्डे-गुड़िया, बाजों से।
थककर बेफिकर सो जाते हैं
सारी रात करवटें बदलते हैं
इनके मन की ये ही जाने
पल में सोते पल में जाग जाते हैं।
बच्चों की मुस्कान
करती है जीना आसान
हो कितना भी मन उदास
ये करा देती सुख की पहचान।
