निर्भीक नितान्त
निर्भीक नितान्त
छत्रछाया में रह जड़ों से जुड़
बढ़ते कदम पर देखे मुड़ मुड़
लड़खड़ाते पगो को थाम
पीछे कहीं छोड़ जन-समूह।
नई राहों को पा अनजान
कही अनकही का रखे ध्यान
जीवन यात्रा का संघर्ष जान
संघर्षों में भी सीना तान।
परिस्थितियों का सामना करते
समस्या को स्वंय सुलझाते
सुख दुख में रह एक समान
नैतिक मनोबल उत्थान बनाए रखते।
कठिनाइयों को कोमल मान
सचमुच ऊंच नीच का भेद न जान
अपनी ही धुन में चलते
जिए बन कर अपनी पहचान।
निर्जनता में भी अर्जित कर ज्ञान
निर्भीक नितान्त उद्देश्य पर ध्यान
मंज़िल की ओर बढ़ते हुए
सम्भव करे स्पष्ट असम्भव अरमान।
पथ उबड़-खाबड़ हो या समतल समान
बाधाएं पार करते
चढ़ते सूरज को कर प्रणाम
ढलते सूरज में भी रखे मान।
