नींदों के व्यापारी
नींदों के व्यापारी


चलो ऐसा करते हैं जानम
नींदों का व्यापार कर लें
नींद जो आँखों से करने लगे छेड़खानी,
एक पलक मैं मूँदता हूँ,
एक पलक तुम मूँद लेना।
आधे तकिये पे मैं सोता हूँ,
आधे पे तुम सो लेना,
बिस्तर की सिलवट में,
चाहत के सारे रंग भर लेना।
ख़्वाबों के आँगन में
चुपके से दोनों ही हम जाएँ,
कुछ ख्वाब मैं चुनता हूँ,
कुछ ख्वाब तुम चुन लेना।
अब मैं जैसा चाहूँ,
वैसी ही तुम दिखना मुझको,
काजल कम लगता है,
आँखों में तुम रातों को भर लेना।
एक लट जो सदा
गिरती रहती है सुर्ख चेहरे पे,
उसे थपकियाँ देकर
कानों के पीछे कर लेना।
कस्तूरी की मानिंद
महक उठेगा आलम सारा,
आधी खुशबू में मुझको रंगना,
आधी में खुद रंग लेना।
नाखुदा पे भी किसी को
इतना प्यार आ जाए,
ये जताने को तुम,
खुद को मेरा खुदा कर लेना।