नीम की छाँव
नीम की छाँव
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याद आते हैं दिन वो सुहाने, ठण्डी नीम की छाँव
हर मस्ती की याद दिलाता, मेरा प्यारा सा वो गाँव
पूरी दोपहरी नीम के नीचे, और हो जाती थी शाम
जो भी गुजरता वहाँ से उसको, कर लेते थे प्रणाम
संस्कृति अपनी बड़ी धरोहर, रखा हमेशा ही मान
करना उस नीम की पूजा, था परम्परा का सम्मान
बाग बगीचे और तड़ाग, गाँव की शोभा के निशान
सावन के झूले अब भी बुलाते, जो होते थे मेरी जान