नीलकंठ
नीलकंठ
हम बिल में सब दिन
रहने वाले सांप हैं !
दुनिया के लिए हम
सब तो अभिशाप हैं !!
सब दिन रात अपने
बिल में छुपे रहते हैं !
प्रतिक्रियाओं से हम
घबराते रहते हैं !!
विष दन्त हमें सब दिन
उपराग देते हैं !
निरंतर प्रयोग का
सुझाव हमको देते हैं !!
इसलिए अर्धरात्रि में ही
हम उठ जाते हैं !
कटु वचन सुना के हम
फिर छुप जाते हैं !!
कोई आहत यदि
होता है तो हर्ज नहीं !
गोरिल्ला महारथियों
के लिए फर्क नहीं !!
हम नहीं जान पाते
कौन हमसे श्रेष्ठ हैं !
कौन समतुल्य हैं
कौन हमारे कनिष्ठ हैं !!
बाण के प्रहार का
हमें नहीं अनुमान है !
किनको आहत करे
इसका नहीं ज्ञान है !!
अपना काम करके
हम खुद छुप जाते हैं !
दूसरे के कटाक्षों को
हम सह नहीं पाते हैं !!
संकीर्णता से निकलना
हमको पड़ेगा !
गरल ग्रहण कर
नीलकंठ बनना पड़ेगा !!
