नई पीढी
नई पीढी
निर्धनता अज्ञान निराशा
अहंकारमय तीखी भाषा
आलस क्रोध द्वेष परनिन्दा
इच्छा बड़ी मन्द जिज्ञासा।
शिक्षा वैरी विद्या दोषी
करे परिक्रमा चौदह कोसी
देवी-देव मनाये निश-दिन
अनहद चाह रहे सन्तोषी।
आगे चल पीछे की सोचे
बढ़े हुओं की धोती नोचे
व्यर्थ जगत की करे बुराई
सोते श्वान के सिर में कोचे।
बिना किए कुछ मिले मलाई
अर्जित करे न रत्ती पाई
ठगी बेमानी छल चोरी से
अपना कोष करे भरपाई।
मात पिता का मान विसारे
सम्बन्धों के ढोंग सहारे
झूँठमूठ का करे दिखावा
नैतिकता के शब्द उचारे।
अतिथि गरू हित मित्र पड़ोसी
सभी नजर में उसकी दोषी
विसर सगों को पर अपनाये
नशे में डूबा गहे बेहोशी।
ये अलबेले हैं अनजान
परिजन इनके हैं हैरान
जुगत कोई करिए नरनाथ
रुके भटकता इनके प्राण।।