नेता नगरी
नेता नगरी
हमको तो सबने सिखलाया,
अच्छा खाना और कम खाना,
बड़े बुजुर्गों की इज्जत में,
चरणों तक तुम झुक जाना।
पर साले इन नेताओं को,
कौन पिलाता ये घुट्टी,
एक बार यदि जीत गए तो,
आदर्शों की करते छुट्टी।
ये बाप गधा को भी कह दें,
लेकिन बस गहने को पैसा,
ये चिलम चढ़ाते हैं ऐसी,
झुकते हैं तो लेने पैसा।
हम ग़म और कम खाते रह गए,
थामे संस्कारों की गठरी,
घोटाले कर ये फूल रहे,
बन रही चिलमची की ठठरी।
ये फूट डाल कर लूटेंगे,
कुछ सोचो समझो मनन करो,
तुम स्वयं समर्थ हो चलो उठो,
मक्कार सोच का दमन करो।
कब तक ग़म खाते जाओगे,
इनके गुन गाते जाओगे,
सेवा लेने के चक्कर में,
तुम जेब कटाते जाओगे,
कब तक ग़म खाते जाओगे।