नए कलेवर की परी कथा
नए कलेवर की परी कथा
नदी, पहाड़, जंगल के ऊपर से
उड़ा जा रहा था मैं लिए छड़ी
किसी जगह जल्दी था पहुँचना
मैं बार बार देखता था घड़ी
वस्त्र कुछ हनुमान से था पहना
और एक थैला भी लटकाया था
इस रूप में मुझको उड़ते हुए
पता नहीं कहाँ पहुँचना भाया था
तभी मेरी नज़र पड़ी वहाँ नीचे
कोई हाथ दिखा कर बुलाता था
शायद मैं उसके ही लिए कुछ
घने जंगल से लेकर आता था
मैं उतर कर आया, खेत था वो
सुन्दर कन्या का था वो इशारा
मैंने थैला खोला, उसको जो दिया
वो एक फूल था बिलकुल न्यारा
वो फिर झोपड़ी की ओर भागी
एक युवक वहाँ निर्जीव सा लेटा
कन्या ने उसको वो पुष्प सुंघाया
थोड़ी ही देर में वो युवक जी उठा
मैं तो बस था वैद्य का सहायक
परी सी कन्या, युवक की कहानी
बस मैं तो ऐसे ही आपके मजे को
सुनाता था दास्ताँ ये अपनी जुबानी।