Amit Bhatore
Others
नदी की आत्मकथा
समंदर में मिलकर
होती है मुकम्मल,
उद्गम से संगम तक
कभी प्रवाह तो कभी ठहराव
आते हैं तमाम उतार-चढ़ाव,
कुलांचे भर बहते रहना
सुंदर स्वर में कल कल कहना
नियति के साथ बहकर
खुद का अस्तित्व भूलकर
समंदर में समा जाना!
फ़िल्म
किताब
वक्त
मजदूर ही तो ह...
साथ में मिलकर...
सुंदरता को दे...
तुम नारी ही ह...
ग्रीष्मावकाश
नेह ह्रदय का ...
सच की राह पे ...