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Amit Bhatore

Others

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नदी की आत्मकथा

नदी की आत्मकथा

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नदी की आत्मकथा

समंदर में मिलकर

होती है मुकम्मल,

उद्गम से संगम तक


कभी प्रवाह तो कभी ठहराव

आते हैं तमाम उतार-चढ़ाव,

कुलांचे भर बहते रहना


सुंदर स्वर में कल कल कहना

नियति के साथ बहकर

खुद का अस्तित्व भूलकर

समंदर में समा जाना!



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