" नारी शक्ति"
" नारी शक्ति"
नारी तेरे रूप हजार
तुझसे ही सजता परिवार,
तू ही शोभा है घर की
तू ही शक्ति है नर की,
तू ही सीता तू ही काली
तूम ही तों हो प्रेम करने वाली,
तेरा ममता से भरा आँचल
तेरा प्रेम तो है निश्छल,
तू कोमल कभी बन जाती कठोर
तूम बिन ना कोई पावे ठौर,
हर नारी के हैं कुछ सपने
क्यों रौंदते हैं उसे अपने,
करो ना उसपर अत्याचार
तभी सुखी रहेगा परिवार,
पल-पल ना धिक्कार दो
उसे जीने का अधिकार दो,
ये तों बस दूसरों के लिए जीती है
ना जानें कितनें कडुवे घूंट पीती है,
ये दर्द भूलकर मुस्कुराती है
रौशन जहाँ कर जाती है,
ये सौंप देतीं अपना जीवन
फिर आहत करतें क्यूं इसका मन,
हर रिश्तें से यह जुड़कर
हर दुःख सुख सहकर,
अपने फर्ज निभाती है
तभी तों वह देवी कहलाती है,
तू तो जीवन की छाया है
मोह से भरी माया है,
तू ममता का सागर है
भरती प्रीत का गागर है,
तू ही घर की इज्ज़त
और रिश्तों की शान है,
घर के सुख की खान है
पौरूषता की आन है,
अति तुझ पर जब आती है
अबला से चण्डी बन जाती है,
इस अबले की तो
सारी बात निराली है
ये जहां-जहां रहे
वहाँ हरियाली ही हरियाली है,
इसें बनाओं सब स्वतंत्र
बन जायेगी सुख मंत्र,
यह तो धरती माँ और
जल की बहती धारा है,
यह जिंदगी और जन्नत
का खुबसूरत नजारा है,
प्रेम तन-मन लुटाकर
करती तू बलिदान,
खुद को अर्पित कर
करती सबका उत्थान,
दो उसे सब वो सम्मान
बन जाए वो स्वाभिमान।
