नारी और परिवार
नारी और परिवार
संयुक्त परिवार की निर्णय प्रक्रिया में
बच्चों की देखभाल में,
नारी हितों के संरक्षण पर आग्रह हो सकता है
किंतु पुरुष प्रायः गृह कार्यों से कतराते हैं।
इसलिये बच्चों की देखभाल पर बल देने का अर्थ है
नारी घर और बाहर दोनों जगहों पर
कामों की चक्की में पिसने लगती है
नारी पर कामों की लदाई जारी रहती है।
घर का काम कमरतोड़ होता है
यह मस्ती से भरा और हल्का फुल्का नहीं होता ,
नारी पर थोपे गए अभावों का कुप्रभाव
उससे जन्मे व्यक्तियों पर होता है।
उच्च जन्म दर के दुष्प्रभावों से
नारी की और कुछ कर पाने की
स्वतंत्रता कुंठित हो जाती है
और नारी प्राय इसी दुष्चक्र में फँसी रहती है।
शिक्षित महिला निरंतर जन्म देने के
बंधन में बँधी नहीं रहती,
शिक्षा व्यक्ति के ज्ञान क्षितिज का विस्तार करती है
नारी के स्तर और शक्तियों में सुधार होता है।
नारी के हितों की अनदेखी
अन्ततः पुरुषों को ही भारी पड़ती है
नारी की स्वतंत्रता और कुशलक्षेम से
सभी के जीवन पर सुखद प्रभाव होता है।