न सीखा
न सीखा
गजलों को मेरी तू तहजीब न सीखा
मतला, मकता, काफ़िया, रदीफ न सीखा।
कितनी बार गिराया है मात्रा बहर के वास्ते
कैसे लिखते हैं दीवान ये अदीब,न सीखा।
देख ले शायरी में शायरों का हाल क्या है
किस कदर हैं दौलत से ग़रीब न सीखा।
महफ़िलें, मुशायरें, रिसाले मुबारक हो तुझे
मशहूर होने की कोई तरक़ीब न सीखा ।
गुजर जाऊँगा गुमनाम, तेरा क्या जाता है
शायरी मेरी है कितनी बद्तमीज़ न सीखा।
हक़ीक़त भी हक़दार है सुखनवरी में अब
ज़िक्रे हुस्नो इशक़, आशिको रकीब न सीखा।
मेरी आज़ाद गज़लों पे तंज करने वालों
मुझे कैसे करनी खुद पे ,तन्कीद न सीखा ।
पढ़तें है लोग मगर देते अहमियत नहीं
अजय यहाँ है कितना बदनसीब न सीखा
