मुश्किलों का दौर है
मुश्किलों का दौर है
मुश्किलों का दौर है
क्यूँ किसे आजमाते हो
शोर भी चहुओर है
फिर क्यूँ किसे ड़राते हो
सो गये हम जागकर
ऐसा सितम क्यूँ कर दिया
ख्वाहिशे कुछ और हैं
फिर मुझे क्यूँ ड़ीगाते हो !
आज तक सब सह लिय़ा
क्या अब समय ना बदलेगा
आजमों को बदल दिया
फिर तुम क्यूँ सताते हो !
दौर तो बदलते हैं
इंसान भी क्या बदलेगा
गर ये सच् ना हो सका
फिर झूठ क्यूँ बताते हो !
हम तो ना सहमते है
कोई भी गर संताप हो
तुम भी ना समझते हो
क्यूँ ना ये अभिशाप हो
वक़्त रहते चेत लो
यही समय की चाह है
वरना ऐसा कह रहे सब
इतिहास क्यूँ दुहराते हो !!
