मुखौटा
मुखौटा


एक मुखौटा रोज़ पहनकर ,
हर इंसान मुस्कुराहट का,
चल देता है महफ़िल में
अंतर्द्वंद चलता रहता,
ऊपर शीतल छवि दिखाता है।
मन में सैलाब जज्बातों का ,
खुद को निश्चिंत बताता है
जाने क्यों छुपाता है ,
अपने अंदर आँसुओं का वेग
आवरण है यह दुनिया के लिए,
या फिर खुद को भ्रमित करता है
पर आईना के आगे तो,
सब का भेद खुल जाता है
क्योंकि आईना तो सच बोलता है
किसके लिए दोहरी जिंदगी ,
किसके लिए दोहरी शख्सियत ?
मिट्टी का है, मिट्टी में मिल जाएगा।
क्या ईश्वर से तू कुछ छुपा पाएगा?
देख तू कितना थक जाता है ,
पल पल जीता,
पल पल मर जाता है ।
अपनी भावना,
अपनी व्यथा ,
अपनी उलझन मत छुपा,
आज आने दे वह भाव चेहरे पर,
क्यों तू उन से डर जाता है?
सहज, सुलभ, निर्मल मन है तेरा,
निश्चल तेरा अंतरमन
इसको यूं ही रहने दे,
हटा दे आवरण दिखावे के
फिर तू मासूम बालक की
तरह स्वच्छंद खेलेगा,
छल कपट से दूर, उमंग
उन्माद से भरपूर
ईश्वर का भेजा हुआ
अनमोल तोहफा,
तब तू भरपूर जिंदगी जी पाएगा,
भेद जब यह जान पाएगा ,
तू अपनी जिंदगी जी पाएगा।