मुझे धोखा दे दिया नाजिर ने
मुझे धोखा दे दिया नाजिर ने
कुछ इस फरेब से लूटा मुझ को जनाब ने
रुला के मुझ को मुँह छुपा लिया नकाब में
चढ़ता ही रहा मुझ पर ताउम्र सूद इश्क़ का
में उलझा ही रह गया बस हिसाब किताब में।
ना रमल बता पाए ना नजूमी समझा पाए मुझे
के और क्या क्या गम लिखा है मेरे नसीब में
मैं ढूँढ़ता ही रहा शहर भर अपने हरीफ़ को
और कातिल छुपा रहा मुसलसल मेरी करीब में।
चर्चे खूब सुने थे मैंने के बो शहर है करीमो का
मैं आया तो दरबाजे बंद मिले उसके शहर में
ले दे के रह गया था चंद यादों का ही सहारा
फरेबी ने यादें भी मांग ली ईद की बख्शीश में।
खत और तस्वीरें फाड़ने से क्या होगा हासिल
नाम तेरा छपा है मेरे दिल के दरो दीवार में
गवाह है मेरे क़त्ल की यह कातिल आँखे तेरी
मगर में क्या करूँ मुझे धोखा दे दिया नाजिर ने।
१ नजूमी : ज्योतिषी
२ . हरीफ़ - दुश्मन
३ मुसलसल - हमेशा
४ . करीमो - दरियादिल
५ नाजिर - गवाह
