" मत रूठो मेरी कविता "
" मत रूठो मेरी कविता "
हे ! कविता मेरी
तुम ना मुझसे
रूठना कभी
तुम जो रूठ गयी
मुझसे मैं ना जी पाउँगा !
अपनी भावनाओं
अपनी व्यथाओं को
छंदों में पिरोके
किसको सुनाऊंगा ?
भाषण तो मुझे
देना नहीं आता है
लोगों को भरमाना
भी नहीं आता है !
बस इन विधाओं के सहारे
अपनी बातें कह लेता हूँ !
शब्दों के जालों में
मैं उलझना नहीं
चाहता हूँ !!
अलंकारिक अभिव्यक्तियों
को भला कौन समझे
रसों के बंधनों से मुक्त
होकर कोई
बात सुनना चाहता हूँ !!
हे ! कविता मेरी
तुम ना मुझसे
रूठना कभी
तुम जो रूठ गयी
मुझसे मैं ना जी पाउँगा !!
अपनी भावनाओं
अपनी व्यथाओं को
छंदों में पिरोके
किसको सुनाऊंगा ?