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Sandeep kumar Tiwari

Others

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Sandeep kumar Tiwari

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मत पूछो कि क्या है माँ

मत पूछो कि क्या है माँ

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दहकती हुई धूप में

तरुवर का साया है,

माँ के आँचल में 

ब्रह्मांड समाया है,

मरूस्थल सी धरती पर

सूखी बंज़र परती पर

अटकी हुईं साँसों का वरदान, 

हवा है माँ ,

अहसान इसका बयां नहीं,

मत पूछो कि क्या है माँ!



माँ के कोमल चरणों में चारों धाम हैं

थके हुए इस जीवन में,

माँ शीतल आराम है 

शबरी के मीठे बेर में,

देवकी आँसुओं के ढेर में, 

यशोदा के माखन में, 

कौशल्या के आँगन में -

जैसे प्रेम की झलक दिखती है 

संसार कि सारी माताएँ भी

ठीक वैसे ही बिनमोल बिकती हैं,

दिल के अँधेरे कमरों का 

दीपक और दीया है माँ,

अहसान इसका बयां नहीं

मत पूछो कि क्या है माँ!



संसार के निर्मल गुणों का 

निचोड़ है, सच्ची भावना है,

व्याकुल और उलझे मन की 

सुलझी हुई सांत्वना है,

माँ की बदौलत हम भी

दुनिया को जान सकें,

माँ के ही रूप में

हम ईश्वर को पहचान सकें,

इस निर्लज्ज संसार में

शर्म और हया है माँ,

अहसान इसका बयां नहीं

मत पूछो कि क्या है माँ!



हमारी रग-रग में

इसकी ममता समाई है,

माँ कोई रिश्ता नहीं

रिश्तों की गहराई है,

हर रिश्ते को तोड़ना भले

मायूस न माँ को तुम करना,

अस्तित्व तुम्हारा इससे है

न धूमिल इसे तुम करना!



हे राम पिता! इस जीवन में

जाने हमने क्या-क्या पाप किए,

कभी पिता को मायूस किया

कभी माँ की आज्ञा टाल दिए,

धरती के अभागों से 

हम भी तो अभागे हैं,

तेरे ही रूप को चोट देकर

तेरे ही पीछे भागे हैं,

फिर भी इक उम्मीद है,

इस ना-उम्मीद जीवन में,

माँ का आँचल भरा रहे 

तेरे फूलों की इस बगियन में,

हज़ार गुनाहों पे भी मिली

जीवन की दया है माँ,

अहसान इसका बयां नहीं

मत पूछो कि क्या है माँ!

मत पूछो कि क्या है माँ!!



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