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Niharika Singh (अद्विका)

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Niharika Singh (अद्विका)

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मस्तानी होली

मस्तानी होली

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द्वार पर आई रे मस्तानी होली

रंग डारो रे होकर मस्त मगन,

भिगाओ रे तन मन प्रेम रंग में

रहे न जाए मन में कोई अगन।


खुशी की कली खिल मुस्काए

रंग में मिला दो भंग सांवरिया,

तुम बिन होली कौन संग खेलूँ

धीर न धरे मोरा मन बावरिया।


पीके भंग नाचूँ ढोलक थाप पर

घुंघरू बांधकर अपने पांवों में,

टोको न आज रोको न कोई मुझे

मन उड़ चला आकाश के गाँवों में।


तोड़ दो आज सारे मन के बंधन

केवल लाज पर रखो सब पहरा,

सब रंग फीका पड़ जाना एकदिन

प्रेम का रंग चढ़े चटख औ' गहरा।


घाव जो है हरा भर जाएगा पुनः

भीगा लो गोरी अपनी चुनरिया,

दुखों के बाद आई खुशी की होली

भर लो खुशी से मन की गगरिया।


दुख और खुशी के मिले जो रंग

मन रंग कर हो जाए केसरिया,

केसरिया रंग का लगा गुलाल तो

तिरंगा भई गोरी की धानी चुनरिया।


गालों पर लगे जो रंग गुलाल के

फूलों सा खिला गोरी का मुखड़ा,

भूल जाए आज सारे गिले शिकवे

बिसरा दे मन में बसे सारा दुखड़ा।


सबको आज आओ लगा ले गले

तोड़कर ऊँच-नीच, धर्म की दीवार,

प्रेम रंग से रंग दे सब का अंतर्मन

खोल दे घृणा से बंद है जो किवाड़।


उस आंगन को रंग दे चलो मिलकर

जो आंगन सूना पड़ा है रंग विहीन,

सूने मन को भिगो दें रंगों से आज

होठों से मुस्कान उनकी न हो विलीन।


समय दिया है समय ने एक बार

ख़ुशियों से भर लो अपनी झोली,

घाव जो है हरा भर जाएगा पुनः

आई द्वार पर आई मस्तानी होली...


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