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Kaushik Dave

Others

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Kaushik Dave

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मोबाइल फ़ोन

मोबाइल फ़ोन

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एक लत मोबाइल की ऐसी लग गई है


मैं मोबाइल का? या मोबाइल मेरा!

कौन किसका यह पता न चल सका!


अच्छे खासे इन्सान को गुलाम बना देता है

मोबाइल के सिवाय कुछ अच्छा नहीं लगता!


छोटे छोटे बच्चे भी दिवाने हो गये हैं

मोबाइल हो तो खाना खाते हैं


विडियो गेम्स कार्टून क्या क्या देखते हैं।

बच्चों को खिलौने पुराने लगते हैं


एक लत मोबाइल की ऐसी लग जाती है

अच्छे अच्छे भी बिना मोबाइल परेशान हो जाते हैं।


यह कहानी नहीं मोबाइल की!

यह है हम जैसे मोबाइल प्रेमीओकी!


(मोबाइल फोन- कटाक्ष व्यंग्य रचना)



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