मंजर
मंजर
बड़ा भयावह
बड़ा दर्दनाक
होता है,
वह मंजर
जब होता है कोई
अपना, बहुत अपना
मानो दिल ही...
मृत्यु शय्या पर !
देखना उसे,
तड़पते हुए,
पल-पल, तिल-तिल
क्षण-क्षण, जाते हुए
मृत्यु-मुख में
बड़ा भयावह होता है
वह मंजर !
बहुत असहाय,
बहुत छोटे
हो जाते हैं हम
रह जाते हैं हाथ बांधे
टूट जाता है भ्रम,
कि सब कुछ है हम
कुछ भी तो नहीं?
किसी में भी नहीं ..
सुविधाएँ
वह भी तो काम न
हीं आती?
तब कितनी तड़प,
कितना दर्द,
कितनी बैचेनी, बेबसी
उमड़ पड़ती है !
रह जाते हैं सिर पटक,
जब कोई अपना,
बहुत अपना
होता है मृत्यु- शय्या पर,
तब दिल ही टूट जाता है,
या कि दिल का टुकड़ा
कहीं खो जाता है,
जोड़ती हूँ
पर दिल आकार
नहीं लेता,
वह टुकड़ा ,
जो खो गया कहीं!
वो जो था बहुत अपना
जो बन गया है सपना,
जो सच था
वह यही था कि
मंजर बहुत भयावह था
छोड़ गया अनुत्तरित प्रश्न
जिसमें जूझते रहेंगे ताउम्र
रह गई अभिलाषा, तन्हा
बेबस, अकेले लड़ते
अपने ग़म से !
ढूंढते प्रश्नों के उत्तर ।