मन
मन
नहीं ठहरता कहीं मन भटकता बादल सा है,
कहीं दूर जा कर अटकता सा है,
लोग कहते हैं इसे आवारा है ये,
पर मन को पता है कहा जाना है इसे,
तड़प उठता है ये कभी कभी जब मन का कुछ नही हो पाता है,
ऐसा नहीं कि समझाती नहीं हूं,
पर ये है कि मानता ही नहीं है,
कभी बाजारों की गलियों से गुजरते हुए,
आंखो से भरकर देखते हुए,
ना जाने किस की चाहत लिए,
फिरता है ये आवारा सा ये,
ना किसी बंधन में बंधा ,
ना किसी के प्रेम में पड़ा,
फिर जैसे कुछ पाने की चाह लिए ,
रहता नहीं आस पास ये मेरे ,
जैसे नहीं हैं सुबह शाम मेरे,
मन कहां रहता पास मेरे,
भटकता है आस पास मेरे,
किए कई जतन मैने,
पर सीरत से है पहचान मेरे,
कहीं ना कहीं मै भी चाहूं,
मन की सुनूं ऊंचे आसमान में उड़ती रहूं ,
नहीं कही अब मन रहता है पास मेरे,
आवारा बादल सा उड़ता है आस पास मेरे.
