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Dr. Priya Kanaujia

Others

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मन मयूर

मन मयूर

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महक जाती हैं धरती जब

बरसती हैं बूँदें उसपर बारिश की

दौड़ जाते हैं खानें को हम

पकौड़ें चुस्कियों के साथ चाय की

नाचते कूदते रहते हैं

बारिश की बूँदों पे देकर के ताल जब हम

यादें अभी भी जहन में रखी हैं

बसा कागज की कश्तियों की

घुमड़-2 कर आते हैं बादल

बरसा जातें हैं अपना प्यार हम पे

बन जातें हम मयूर जंगल के और

अपनी छत पर रहते नाचते



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