STORYMIRROR

मन की पीर छलक नयनों से

मन की पीर छलक नयनों से

1 min
303


झर झर उमर झरे हाथों से जैसे रेत झरे ।।


नीम अहाते का जब झूमा 

साँसें सिहर गयीं,

पिछवाड़े बरगद के नीचे 

यादें ठहर गयीं।


रुक रुक चले विलंबित बरखा

मानस खेत जरे।

झर झर उमर झरे हाथों से जैसे रेत झरे ।।


खुली डायरी जब अतीत की

लम्हे सिसक उठे ,

भूले भटके पल खुशियों के 

पीछे खिसक उठे ।


मन की पीर छलक आँखों से

अश्रु समेत गिरे।

झर झर उमर झरे हाथों से जैसे रेत झरे ।।


सिरहाने पर रखे फूल

पंखुरियाँ झर जायें

समझ न पाये मन अब हम

रोए या मुस्काएँ ।


मुरझायें सुख कलियाँ सारे

कष्ट- निकेत हरे ।

झर झर उमर झरे हाथों से जैसे रेत झरे ।।


Rate this content
Log in