मन की दास्तां
मन की दास्तां
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मन मेरा जाने क्यूं आज बेचैन है
जाने इसे किसकी चाह है
मन मेरा आज हैरान है
जाने कौन करता इसको परेशान है
मन मेरा हर रोज उजड़ता और फिर बस जाता है
मन मेरा ये महामारी का प्रकोप देख डर जाता है
मन मेरा भविष्य के लिए रहता आशंकित हैं
जाने क्या होगा आगे ये समझ न चिंतित है
बेचैन मन की कहे क्या दास्तां
मन को ऐसे ही मेरे रहने दीजिए बेचैन आपको मेरा वास्ता।
