STORYMIRROR

Rishabh Tomar

Others

4  

Rishabh Tomar

Others

मन जपता है कृष्णप्रिया

मन जपता है कृष्णप्रिया

2 mins
424

अन्तस् धड़के राधे राधे 

मन जपता है कृष्णप्रिया

शरद चन्द्र की शुभ्र ज्योत्स्ना

ज्यों छिटकी चहु ओर पिया।


तन मन वन ये खिले हुए हैं

खिली हुई अमराई है

हर राधा व्याकुल कान्हा को 

व्याकुल सभी कन्हाई है,

पल पल जलते पुरवाई में

तन्हा गम होकर ये दिया

शरद चन्द्र की शुभ्र ज्योत्स्ना

ज्यों छिटकी चहु ओर पिया।


अन्तस् धड़के राधे राधे 

मन जपता है कृष्णप्रिया,

शरद चन्द्र की शुभ्र ज्योत्स्ना

ज्यों छिटकी चहुँ ओर पिया।


राकापति की धवल चाँदनी 

मुरली संग ललचाती है,

यमुना तट पर हर राधा को

अवगुंठन कर सकुचाती है,

समझ नहीं आता ये कैसा

जादू इसने है डाल दिया

शरद चन्द्र की शुभ्र ज्योत्स्ना

ज्यों छिटकी चहुँ ओर पिया।


अन्तस् धड़के राधे राधे 

मन जपता है कृष्णप्रिया,

शरद चन्द्र की शुभ्र ज्योत्स्ना

ज्यों छिटकी चहुँ ओर पिया।


शशि नन्हे बालक की तरह

नव रजत हिंडोल सजाता है

फागुन अपनी मस्ती के संग

मन मृदंग यहाँ बजाता है

तब कहता हूँ सुर मन छेड़े

पवन गा रही है रसिया

शरद चन्द्र की शुभ्र ज्योत्स्ना 

ज्यों छिटकी चहुँ ओर पिया।


अन्तस् धड़के राधे राधे 

मन जपता है कृष्णप्रिया,

शरद चन्द्र की शुभ्र ज्योत्स्ना

ज्यों छिटकी चहुँ ओर पिया ।


पीली चुनरी ओढ़ बसंती

यौवन से सुसज्जित धरती है,

करने को गगन को मगन यहाँ

ये पुलक प्रकट जनु करती है,

तब लगता है नभ प्रियतम ने

बाहों में भर आज लिया,

शरद चन्द्र की शुभ्र ज्योत्स्ना

ज्यों छिटकी चहुँ ओर पिया ।


अन्तस् धड़के राधे राधे 

मन जपता है कृष्णप्रिया,

शरद चन्द्र की शुभ्र ज्योत्स्ना

ज्यों छिटकी चहुं ओर पिया ।


सरसों पीली सूरज पीला 

बंसती पीला चाँद खिला

फूलों का रंग सुहाना है

ये हर उर में बन प्रीत घुला,

कण कण ने लेकर रूप तेरा

गम मेरा प्रिये हर एक सिया,

शरद चन्द्र की शुभ्र ज्योत्स्ना

ज्यों छिटकी चहुँ ओर पिया ।


अन्तस् धड़के राधे राधे 

मन जपता है कृष्णप्रिया,

शरद चन्द्र की शुभ्र ज्योत्स्ना

ज्यों छिटकी चहुँ ओर पिया।


मदमस्त पवन के झोंके हैं

कलियों से सजी बाराते हैं,

फागुन दूल्हा के स्वागत में

खिलती ये ज्योत्स्ना राते हैं,

बस इन्ही सुकोमल लम्हों का

मस्ती ने भू पर रूप लिया,

शरद चन्द्र की शुभ्र ज्योत्स्ना

ज्यों छिटकी चहुँ ओर पिया।


अन्तस् धड़के राधे राधे 

मन जपता है कृष्णप्रिया

शरद चन्द्र की शुभ्र ज्योत्स्ना

ज्यों छिटकी चहुँ ओर पिया।


Rate this content
Log in