मल्हार का तराशा
मल्हार का तराशा


कहीं ना कहीं किसी ने
मल्हार राग तो छेड़ा होगा,
तभी तो इस ज़मीं ने आसमां से
बारिश को तेड़ा होगा।
दीपक राग को दोहराने की
अब कोई आवश्यकता ही नहीं,
किसी को आगे बढ़ते देख
किसी का दिल तो जला ही होगा।
प्यार के इस दरबार में
तानसेन जैसे दीपक राग
गाने वाले और
ताना-रीरी जैसे मल्हार
राग गाने वाले को
बुलाने की अब कोई
जरूरत ही नहीं,
यहाँ प्यार में एक-दूसरे
को जलाते और
धोखा देकर आँखों से -
पानी बरसाने वाले को
देखा ही होगा
ये तो हुई प्यार भरे
दिल वाले लोगो की बात
अब असली दुनिया में
आ जाते है
जमाने में हमारे है बहुत से
तानसेन है खड़े,
वो ही किसी को आगे बढ़ा के
खुद ही जलते हैं वो बड़े।
किसी का देखा धन दौलत और
बड़ा रुआब,
जलाते हैं दिल को वो दिखा के
झूठे ख़्वाब।
जरूरत है यहाँ पर एक ऐसे
मल्हार राग की,
जो मिटाए जलन
ये झूठे ख़्वाब की।
कुछ ऐसे लगावों से भरा हो
जो मल्हार राग,
जो मिटाए सारे जलन के दाग,
प्यार, हुंफ से भरा हो ये राग,
जो मिटाए जलन और सारे
झूठे ख़्वाब।
जब बीच में प्यार की दो लाइन
आ गई थी तो उसपर छोटा सा
ये शायराना अंदाज़ में प्यार
भरा दर्द निकला...
कभी ना कभी किसी ने
मल्हार राग तो छेड़ा होगा,
तभी तो इन आँखों में
पानी का बसेरा हुआ होगा।