मित्रता
मित्रता
मित्रता हो तो ऐसी हो,
निश्छल, शांत, अडिग
समर्पित हो, निभा सको तो करना
ना निभा सको तो हट जाना पीछे,
ना जाना छोड़ कर मझधार में ,
कोई अस्तित्व ना होगा, बिन डाली के बेल जैसे।
मुख मण्डल में मुस्कान लिये ,
मानवता को दर्शाने वाली हो,
नतमस्तक पर संस्कारों का ताज लिये ,
हर उलझी गुत्थी को सुलझाने वाली हो
मित्रता हो, मित्रता का भाव समझने वाली हो ।
बिन मित्रता के जीवन है ऐसा,
बिन पानी के मछली जैसा ।
मित्रता प्रेम स्वरूप हो, पर स्वार्थी ना हो ,
समपर्ण तो हो, पर आवेश ना हो ।
रंग जैसा हो, पर उदास ना हो ,
गलती पर ना छोड़ दे ,
गलती सुलझाने की शक्ति वाली हो ।
अविरल, अदृश्य हो कर भी, साथ निभाने वाली हो।
मित्रता हो, मित्रता का भाव समझने वाली हो
ना कि मतवाली हो।
इंद्रधनुषी रंगों सी हो,
बेरंग को ,रंगीन बनाने वाली हो।
सूरज के जैसी गरिमा लिये,
चंद्रमा जैसी शीतलता बरसाने वाली हो ।
वाणी में मिठास लिये,खुशियों का एहसास कराने वाली हो।
मित्रता हो, मित्रता का भाव समझने वाली हो
ना कि मतवाली हो ,ना कि मतवाली हो ।
