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Geetanjali pathak

Others

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Geetanjali pathak

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ऋतु राज बसंत

ऋतु राज बसंत

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बसंत की बेला

ले कर रंगों का मेला

चली चली बस चली है कहाँ

कलियों ने रंग समेटे हुए है ।

पीले पीले फूल खिले हैं।


सजने को बगिया

खिलने को कलियाँ

आश लगाए हर कपोल खड़ी है।


नीले अंबर के नीचे

हर एक आवाज़ गूँज रही है

रंग बिरंगी नंही परियां

हाथों में लेकर फूलों की डलिया

पंख पसारे झूम रहीं हैं ।


सरसों की डाली, भंवरों की रानी

हवा संग डोल रही है।

कोयल रानी

सुरों में मिठास घोल रही है।


सूरज की किरणें

धरा का श्रृंगार करने लगी है ।

हल चलाने किसान चला है

आँगन में रंगोली बनने लगी है।

अपनी अनोखी छटा बिखरे

प्रकृति ओर भी मनोहर लगने लगी है।


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