मित्रों संग एक शाम
मित्रों संग एक शाम
खुशहाली है आ जाती है जब देखते हैं कोई चित्र,
सांसें भी सुवासित हो जाती हैं जब लगाते हैं इत्र।
मन मयूर नाच उठता है जब, सफलता संग होते हैं भाव पवित्र,
पर सबसे बड़ी है वह खुशी जब मिल जाए कोई मित्र।
इस स्वार्थी जगत में ,अलग-अलग रिश्तों के अलग ही चरित्र,
सारे रिश्तों में विवाद संभव है, आदिकाल से निर्विवादित है मित्र।
दुनिया के सुखों से हो सकती है ऊब,पर सदा सुखकर है मित्र,
जिसे छोड़ने को जी न चाहे, दिल जिसे दिल सर्वदा सराहे वह मित्र।,
पर सबसे बड़ी है वह खुशी ,जब मिल जाए कोई मित्र।
23 जनवरी ,2016 को मेरे जीवन की, वह शुभ घड़ी आई थी,
जब तीस वर्षों के बाद हम ग्यारह मित्रों ने,यह शाम मिलकर बिताई थी।
यूँ तो हम बारह मित्रों ने ,शाहजहाँपुर में ही मिलने की योजना बनाई थी।
किस्मत का खेल कहें या कहें, नौकरी में ना न करने की मजबूरी।
पर बारहवें मित्र और हम ग्यारह मित्रों की, एक साथ मिलने की हसरत रह गई अधूरी।
1986 में बिछड़े हम मित्रों ने,एक साथ जश्न के स्वर्णिम स्वप्न सजाए थे,
मैं गया था दिल्ली से, एक बरेली और दो मित्र लखनऊ से आए थे।
एक मित्र बरेली के बहेड़ी कस्बे से आ न पाए थे, सब आएंगे जरूर ऐसे ख्वाब सजाए थे,
कार्यक्रम की सारी व्यवस्था हमारे कलाकार, और समाज सेवी बन्धु राजीव जी बनाए थे।
कैलाश पर्वत सी दृढ़ संकल्प वाले कैलाश , इस सुखदायी नाटक के सूत्रधार थे,
संचार सेवा सदुपयोग करते हुए हम सबने सतत, एक दूसरे से संपर्क बनाए थे।
पहले राजीव जी के घर पर बैठकर हम सबने, अपने तीस सालों के संस्मरण सुनाए थे।
बारहवें मित्र से फोन पर शिकवे करते ,थक गए हम ग्यारह पर वह नहीं थक पाए थे।
फिर पूर्व योजना के अनुसार होटल, शाम के भोजन का हम सबने मिलकर आनन्द लिया,
तीस बर्ष की अवधि तक सभी बारह के बारह स्वस्थ और सानंद हैं, इसके लिए प्रभु को धन्यवाद दिया।
अगले तीन वर्ष बीत गए, और हम सब संपर्क में और पूरी तरह खुशहाल हैं,
सब पर प्रभु की अनुकम्पा है , और हम एक दर्जन मित्र इस भू लोक मित्रता की एक अनुकरणीय मिसाल हैं।
