मेरी वसीयत सच्चे दोस्त
मेरी वसीयत सच्चे दोस्त
ज़िन्दगी जो मिली
तो एहसास बनते गए
दोस्ती के पाक दामन में
न कोई स्वार्थ चले।
परेशानी तो आज है
सुकून कभी आयेगा
मेरा दोस्त ही मेरा खुदा है
कब तक मुझे रूलाएगा।
जब मिलेगी वो
जन्नत का नूर बरसेगा
चेहरा उसका मोम होगा
देखकर मुझमें पिघलेगा।
पवित्र रिश्ते में जो भी मिला
सफर ये कटता गया
सुबह से शाम कब हुई
इन सांसों को न पता चला।
मित्रता की मंजिल में
जो भी पूंजी मुझे मिली
मेरी वसीयत बनती गयी
ऐसा लगा सब विरासत में
बिन मांगें मिलती गयी।
यही एक रिश्ता है
जिसका इतिहास मैने रचा,
सोच कर खुश हूँ
ऊपरवाले ने खाली झोली
सच्चे दोस्तों से भर दिया।
