मेरी वेदना
मेरी वेदना
मेरे कोमल निश्छ्ल अनुरागपुर्ण स्वपनों को,
इस कदर आग लगा देना सही नहीं।
पलकों की सेज पर सोये हुए उस पानी को,
इस कदर झकझोरना सही नही।
मन के उन मासूम खयालों को,
इस कदर रुला जाना सही नहीं।
नैनो की डोर, होठों के अलफ़ाजो को,
इस कदर बाँध कर तोड लेना सही नहीं।
इस बहती नदिया मे मेरे दिल को,
य़ू मझधार छ़ोड देना सही नहीं।
जानता हूँ, सरेआम... तुम्हे इस कदर,
दोषी ठहराना सही नहीं।
पर मेरी इन मर्मस्पर्शी बातों को,
समझकर ना समझना सही नहीं।
मेरे कोमल निश्छ्ल अनुरागपुर्ण स्वपनों को,
इस कदर आग लगा देना सही नहीं।