मेरी ताजमहल यात्रा
मेरी ताजमहल यात्रा
आज काफी खुशनुमा दिन था क्योकि आज मै अपने परिवार सहित ताजमहल व प्रेम मन्दिर यात्रा करने के लिए गया था। आज मेरे दिन की शुरुआत सुबह तीन बजे से हुई। मुझे याद है कि मैं सोया हुआ था और उस वक्त एक आवाज़ मेरे कानों में आई और वह आवाज़ थी पीयूष उठज़ा। वह आवाज़ मेरी माता जी की थी। मैं उठ गया। तब सुबह के तीन बजे मैं उठ गया। अब इसे ताजमहल जाने का उत्साह ही कहेंगे कि मुझे इतनी जल्दी उठने के बाद भी नींद की एक उबासी भी नही आई। अब हमारे घर मे हर कोई उठ गया था। इधर से उधर भागम भाग चल रही थी और फिर आखिर कर पाँच बज ही गए ओर उसके बाद हम अपनी यात्रा करने के लिए बस में बैठ गए।
हमने बस सिर्फ अपने परिवार के लिए करी थी। हम बच्चे सबसे पीछे वाली सीट पर जा सवार हुए। अब हम मस्ती करने लगी। हम कभी दमशराज खेलते तो कभी अंताक्षरी। पर हमारा उत्साह फीका पड़ने लगा और हमारी आंख लगने लगी। पर जो हमारी कच्ची नींद थी वह पूरी तरह सिर्फ और सिर्फ एक ही खबर में उड़ गई वह खबर थी की हमारा ड्राइवर पिछले तीन दिनों से सोया नही है और वह लगातार तीन दिनों से सफर में है। जब हमे यह खबर मिली तब हम डर गए और हमारी आंखे ड्राइवर से नही हटी। पता नही ड्राइवर भी किस मिट्टी का बना था।
हमने उस ड्राइवर से कहा कि वह सो जाए और बाद में हमे ताजमहल की ओर ले चले पर वह ड्राइवर नही माना। फिर हम जगह जगह अपनी बस रुकवाते ओर आगे चलते। आखिर कर हम ताजमहल पहुच गए। पर हमारा यह रोमांचक सफर यही पर समाप्त नही होता। जब हम ताजमहल पहुचे तब पहले तो हमने खाना खाया फिर हम ताजमहल को निहारने के लिए चले गए पर वहाँपर सूर्य देव ने अपना महा प्रकोप बरसा दिया। पता नही की कब गर्मी के मारे जमीन पर जा गिरे बस गरिमत यह रही कि कोई भी ज़मीन पर गिरा नही। फिर जब हमने ताजमहल की सुंदरता का अच्छे से दीदार कर लिया तब हम ताज महल के भीतर जा पहुचे। वहां जाकर हमे शीतलता का अनुभव हुआ। फिर हम अब ताजमहल से प्रेम मन्दिर की ओर रवाना हो गए। प्रेम मन्दिर का हमारा सफर रोमांचक नही रहा। अंत मे हम अपने घर आ गए।