मेरी रूह
मेरी रूह
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अब ना कोई चैन है रूह को मेरी
कैसी ये बेचैनी सी हर वक़्त छाई है
क्यूँ हर कोई अकेला है यहाँ सबमें
मातम सा क्यों इस ज़हा में फैला है
कैसे अपनी आत्मा से ये पूछूं में
क्या इसी खुशी के लिये मेने बचपन भी
अपना खोया है.....