मेरी मां
मेरी मां
मेरी मां सबसे अलग थी,
बोलती कम, सोचती ज़्यादा थी।
सादा जीवन, उच्च विचार,
इसी को फौलो करती थी।।
मेरी मां सबसे अलग थी,
बोलती कम सोचती ज़्यादा थी।।
श्रृंगार के नाम पर,
सिर्फ़ एक बिंदी ही लगाती थी।
वो भी तभी तक जब तक,
पति की छत्र छाया थी।।
साड़ी के सिवा कभी कुछ,
और नहीं पहनती थी।।
मेरी मां सबसे अलग थी,
बोलती कम सोचती ज़्यादा थी।।
स्कूल में शिक्षिका थी,
हिंदी की अध्यापिका।
भुगोल, रसायन, विज्ञान भी,
बच्चों को ख़ूब पढ़ाती थी।।
हमारी मांगे बिन माँगे ही,
समझ जाया करती थी।
जोड़ घटाव करके उनको,
पूरी किया करती थी।
सुबह से रात तक,
चलते ही रहती थी।
मेरी मां सबसे अलग थी,
बोलती कम, सोचती ज़्यादा थी।।
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