मेरी कविता
मेरी कविता
मैं भी पुजारी सौदर्य का
रूप का भ्रमर सम
राग, छंद, अलंकार का शौकीन
कविता की सुंदरता देखता
ज्यों नूतन आभूषणों को धर
लजाती रूपसी नारी
कलम चलाता
ढूंढता अलंकार
कोशिश कर भी
कविता नहीं बनती
तैयार हो जाती
दुकान के बाहर खड़ी
वो पुतला बाली नारी
सजी और धजी
उपभोक्ताओं को लुभाती
असलियत से बहुत दूर
सत्य की अवधारणा को कर परे
सत्य कुछ अलग है
सौंदर्य है ही कहाॅ
सौंदर्य मूर्तियों के नयन भी तो
कुछ विवशताओं की व्यथा छुपाते
फिर बन जाती है
कुछ भद्दी सी
सूरत की दुश्मन
आभूषणों की बात ही क्या
बेढंगे चिथड़ों में तन को छिपाती
रोगिणी स्त्री जैसी कविता
हां,वह मेरी कविता है
कभी मौत की गाथा सुनाती
कभी वीभत्स नजारे दिखाती
गरीबों की गरीबी दिखाती
हुक्मरानों की तानाशाही दिखाती
हां, वह मेरी कविता है
उसूलदारों के संघर्ष बयान करती
फरेबियों के फरेब दिखाती
प्रेम और वासना का फर्क दिखाती
हां, वह मेरी कविता है
कुछ अशोभनीय सी
भद्दी, काली कलूटी स्त्री सी
यथार्थ को दर्शाती
हीन अलंकारों से
राग और छंदों से अपरिचित।
