मेरी कहानी मेरी जुबानी
मेरी कहानी मेरी जुबानी
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मैं जब बहुत थक जाती हूँ
आँसू बन छलक जाती हूँ
परवाह नहीं करती किसी की
गेहूँ में घुन सी पिस जाती हूँ
सुबह से शुरू हो रात हो जाती हूँ
ख़ुशियाँ सभी की बन जाती हूँ
सवालों में जब उलझ जाती हूँ
जवाब बन खुद को समझाती हूँ