मेरी जिंदगी
मेरी जिंदगी
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हिस्से हिस्से में आया है डर
कभी मां-पिता के लिए होता था
उनकी कमी ना हो कभी
उनसे बिछड़ कर ना जाऊ कहीं
ये हो गया जो नहीं सोचा हो गया
हर बार डर में जीती रही
क्या मालूम पर हमसफ़र के बिछड़ने का डर
कभी इनसे अलग ना होऊ
खुद से खुद कह जाती
वैधव्य ना देखना मंजूर
सुहागन बिंदी जल जाऊ मै
ये डर ही था
हर वक्त डराता था
जी ही नहीं सकती इनके बिना
वहीं डर
और इनसे बिछड़ गई
आज तन्हा हू
अकेले चली हा रही हूं
ना साथी ना मंजिलहै
अब भी अनजाना सा डर
खुद को असहाय सी महसूस करती
डर अंदर समय हुआ
