मेरी जिंदगी है प्रकृति
मेरी जिंदगी है प्रकृति
जो मैं आपको सुनाने जा रही हूँ
कोई किस्सा या कहानी नहीं है
मेरी जिंदगी है प्रकृति
नहीं हो सकती जिसकी कोई अनुकृति।
इस स्वार्थी दुनिया में
जब अपने भी साथ नहीं देते
डर लगता है कुछ कहने से
तब ये प्रकृति मुझे सुनती है।
मेरे साथ हँसती है, रोती है
जब खुश होती हूँ मैं
ये फूल भी मेरे साथ हँसते हैं
ये हवा भी गुनगुनाती है।
पत्ते भी नाचने लगते हैं
पैरो में थिरकन बढ़ जाती है
जब तन्हा होती हूँ मैं
प्रकृति साथ निभाती है।
जब कोई ना समझे मेरी ख़ामोशी
बिन कहे ये समझ जाती है
मुझे हँसाने के लिए एक चिड़िया
तब दूर कहीं से आती है।
पानी का कलरव कल-कल
नदियाँ गीत सुनाती है
चाँद तारे भी हैं मेरे साथी
चुपके से पढ़ लेते हैं
मेरे दिल की पाती।
तारों को गिनते-गिनते
उदासी भी छंट जाती है
तब चाँद की शीतल चाँदनी
मुझे सुलाने आती है।
सब सुख बेमानी लगते हैं
जब पहली बारिश के बाद
माटी से सोंधी-सोंधी
खुशबू आती है।
मेरी हँसी, मेरी ख़ुशी,
मेरी ज़िंदगी
ये मासूम निश्छल प्रकृति
मुझको सबसे ज़्यादा भाती है।।