मेरे पापा
मेरे पापा
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पद्म पत्र जैसी बचपन
एक बिंदु बारिश के
छलकता
मेरे निरिह पन के सामने
घन मेघ जैसे गंभीर वह,
मैं चल रही थी
अंधेरे से उजाले की ओर
उनके बाएं हाथ में बैठे हुए
जैसे आकाश के तारें
बाजार के खिलौने ,
सोते वक्त, उनके कहें हुए
सारे कहानियां मेरे ही हैं
और वो हैं तो आधा डर
आधा साहस भी मेरे हैं।
अब वो
और एक जन्म ले लिए हैं
टूटे हुए शरीर को लेकर फिर भी
मालिक हैं वह
अपने सिंहासन के
कृष्णकाय बंशीधर
वह अपने द्वारका के,
समृद्ध हैं वह
मेरे भीतर
किसी सुरक्षित दुर्ग को
सुरंग जैसे
ले जाते हैं
भिन्न एक पृथ्वी के
आलोकित इलाका को
जहाँ मैंने ढूंढ ली हैं
ईश्वर से भी अधिक
ईश्वर को।