मेरे द्वार आते,पाहुन की तरह
मेरे द्वार आते,पाहुन की तरह
कभी नयनों में आते थे, सपनों की तरह,
अब जीवन नैया में हो ,पतवार की तरह,
माथे पर अब बिंदी लगा ली तेरे नाम की,
कभी मेरे गांव आते एक "पाहुन"की तरह,
सालिगराम सा पूजा था,मेरे मन मंदिर ने,
पर अब समा गये "मन के मीत" की तरह।१।
मेरे घर से होती गली में तेरा नाम लिखा है,
जो बीतते हो गई,मील के पत्थर की तरह,
तेरे नाम की माला पहन आती थी द्वार पर,
अब रख दिया, अलमारी में निशानी की तरह,
जो चंद सिक्के मुझ पर न्योछावर जो हुए थे,
हमने बटुए में रख लिए हैं, विरासत की तरह।२।
ढीले कर दिए,अतीत के तब के स्नेह बंधन,
बसा लिया दिल में अब, तुम्हें ईश्वर की तरह,
हिमालय सा बनाया है, हमने पावन घर को,
तुम्हें शिव बनाया औ खुद बनी गौरा की तरह,
घर सजाने के लिए,कुछ भी नहीं था पास मेरे,
दिल दे दिया तुम्हें, बस एक अलंकार की तरह।३।