मेरा घर
मेरा घर
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गाँव का मेरा घर
मेरे पूर्वजों की निशानी
संस्कृति का परिचायक
मेरे बचपन की यादें।
नहीं रहता वहाँ अब कोई
बन गया है अब खंडहर
हर रात स्वप्न में आकर
याद दिलाता मुझे अपनी ।
मैं खंडहर नहीं
क्या हुआ जो आज बस्ती नहीं
कभी यहाँ भी ठहाके गूँजते थे
आज भी नमीं है मेरी नींव में
तभी तो आँसू भरे नयन
इंतजार कर रहे शाखाएँ पसार
किसी दस्तक का
विश्वास है मुझे
बहार जरूर आयेगी
सूखी कलियाँ खिल जायेंगी
तुम लौटकर आओगे
नवजीवन यहाँ बसाओगे।
