मेरा बचपन
मेरा बचपन
बचपन ने फलांगा
एक नया पायदान
जैसे तितलियाँ ज़हन में
भरने लगीं उड़ान
कभी फूहड़ता से
ठहाके लगाने वाली
हर बात पर जैसे
बिखेरती थी
नज़ाकत भरी मुस्कान
इतना कुछ बदला
कुछ वर्षों के अंतराल में
नन्हे क़दमों से फुदकती
नन्ही सी परी
कदम दर कदम
कहलाने लगी जवान
वो मंद मुस्काना
सकुचा कर सिमट जाना
हर बात में जैसे
गुनगुनाये दिल तराना
ख्यालों के मकड़जाल में
ज़िन्दगी का उलझना
उफ्फ! ये यौवन की
दहलीज़ पर पहुंचना
अनजाने रिश्तों की
थामे हुए कमान
ज़िन्दगी की समझ का
लिए हर साजो सामान
सतरंगी सपनो का
उमड़ता तूफ़ान
ये सब देखा है मैंने
चलचित्र के समान
मुझे याद नहीं
शायद कुछ ऐसा
गुज़रा हो मेरा यौवन
ये तो चिर परिचित
मेरी प्यारी सखियों का
मैंने किया है बखान
क्यूंकि अल्हड़ नादानियों में
कौनसी सीढ़ी थी चढ़े
बचपन से यौवन
कब पार कर गई
मुश्किल है लगा पाना
उन यादों का अनुमान
बस याद है तो अपनी
लम्बे डग वाली फर्राटा चाल
और गंभीर प्रवृत्ति
उस पर रहती थी
सवार….बस एक
चाय सी कड़क मुस्कान।