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Mukesh Chand

Others

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Mukesh Chand

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मौसम की फुहार

मौसम की फुहार

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सूर्य की किरणे ओझल हुई

आज बादलों का बसेरा छाया

बर्फ के फनहें बरस रहे धीमे

सांसों की गरमाहट शेष बचे

धरा ने ओढ़ा आज सफेद परत

दरबदर घूमना हुआ कठिन कार्य

आग की तपिश का सहारा लिए

बैठें है सांसे गुनगुनाने बीते लम्हों को

कहानियों, कथनों में बीतने लगते

ठहाकों से चेहरे

मदहोश होते सभी आने जाने वालों

की खबर लिए

बिजली की रौनक गुल हुई

समाचारों का सिलसिला कहां से

शुरू करें

मंडराने लगे हैं बादलों के आकाश

किस दिशा ले जाएगी ये प्रकाश

जहां से चले थे

आज आकर वहीं रुके हैं

अब नियम स्थिति बदल गए

इन बादलों के बीच

पुराने दस्तूर अब भी जारी रहा है

अपने क्रियाकलाप को आगे बढ़ाने

जहां से चले वहीं आकर रुके

आज यही पुराने मायने बयां करते

मनोरंजन और खानपान का साधन

जुटाने

बादलों ने घेरा है समूचे परिवेश को

जो अपनों को अपने में व्यस्त रखते।


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