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Vivek Agarwal

Others

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Vivek Agarwal

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मौसम की मार

मौसम की मार

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जब भी रिमझिम बारिश होती, 

अपने घर चाय पकोड़े बनते। 

याद करो उन मजदूरों को,

जिनके घर चूल्हे न जलते। 


ठण्ड कड़ाके की जब पड़ती,

हम चला के हीटर हलवा खाते। 

पर ऐसे लोग भी हैं सर्दी में,

बिन कम्बल पूरी रात बिताते। 


गर्मी के मौसम में हम तो,

आम चूसते चला के कूलर

वो गरीब तपती दोपहर की,

कड़ी धूप में तोड़े पत्थर 


पेट भरा हो सर पर छत हो, 

तो सारे मौसम अच्छे हैं। 

पूछो उनसे जिनके अब भी, 

पेट खाली और घर कच्चे हैं। 



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