मौन धरो
मौन धरो
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अपने मन की भावनाओं को
अभिव्यक्ति दूँ,
शब्द बोल
तुझे लिखूँ या मौन धरूँ,
मेरे शब्द
बाण बनकर
कहीं भेद ना दे तुझे,
डर है,
कलम कहीं
आग उगल ना दें
कोरे पन्नों पर,
कहीं शोला ना भड़के
तू जले
और
कहीं तेरा मन तड़पे,
सोच लिया है
मौन रहूँगा
कलम हाथ हो
फिर भी ना लिखूँगा।
मेरे मन शांत रहो
अपने स्वभाव में
फिर भरो,
मौन धरो।
वही शान्ति
वही प्रेम,
ना क्रोध ना
किसी से वैर,
ना घृणा ,
ना द्वेष,
आओ तुम फिर
मौन धरो,
हँसो गाओ
प्रेम भरो,
जीवन की
गति को चलने दो
नदी को स्वयं
बहने दो ।
तुम
शांत रहो ,
मौन धरो।