मैं...उसे
मैं...उसे
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मैं उसे...?
दोषी नज़र आता हूँ!
जिंदगी के फ़लसफ़े बताता हूँ।
जब सच बोल जाता हूँ।
झूठ के नाटकों से पर्दा,
जब उठाता हूँ।
मैं उसे...?
रिश्तों में रिस रहे।
मतलब को जब,
बताता हूँ।
पीठ पीछे...के,
जब सच - झूठ खोल के,
दिखाता हूँ।
मैं उसे...?
दोषी नज़र आता हूँ।
चेहरों से मुखौटे,
जब छीन लाता है।
सच का आईना,
जब दिखाता हूँ।
मैं उसे..?
दोषी नज़र आता हूँ।
मतलब के लिए,
जब याद आ जाता हूँ।
सबकी,
मुसकराहटें पा जाता हूँ।
सच जब बोलता के
दिखाता हूँ।
सबका दोषी हो जाता हूँ।
