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अहमद अज़ीम

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अहमद अज़ीम

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मैं तो सोया भी न था

मैं तो सोया भी न था

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मैं तो सोया भी न था क्यूँ ये दर-ए-ख़्वाब गिरा

मेरी आग़ोश में बुझता हुआ महताब गिरा


फिर समुंदर की तरफ़ लौट चली मौज-ब-मौज

फिर कोई तिश्ना-दहन आ के सर-ए-आब गिरा


अक्स मिस्मार न कर दीदा-ए-हैराँ के सरिश्क

मेरे ख़्वाबों के दर ओ बाम न सैलाब गिरा


ढूँढ सीपी की तरह दिल को न साहिल के क़रीब

ये सदफ़ दूर बहुत दूर तह-ए-आब गिरा


आहन ओ संग को ज़हराब-ए-फ़ना चाट गया

पहले दीवार शिकस्ता हुई फिर बाब गिरा


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