मैं तो अंतहीन उड़ान हूं...
मैं तो अंतहीन उड़ान हूं...
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मैं न मंदिरों का मुरीद हूं,
न ही मस्जिदों का हूं आशना मैं तो अंतहीन उड़ान हूं,
मुझे बंदिशों में न क़ैद कर..
कभी काफिलों में रहा नहीं,
किसी कारवाँ में चला नहीं मुझे रास आई न रौनकें,
मुझे महफ़िलों में न कैद कर..
मैं वो आग हूं जो जली नहीं,
मैं वो बर्फ़ हूं जो गली नहीं मैं तो रेत पर हूं लिखा गया,
मुझे काग़ज़ों में न क़ैद कर..
किसी शर्त पर न जिया कभी,
मैं न जिंदगी का गुलाम हूं मेरी मौत होगी नज़ीर-सी,
मुझे हादसों में न कैद कर..
मैं तो अंतहीन उड़ान हूं ।
