STORYMIRROR

Alok Singh

Others

3  

Alok Singh

Others

मैं शब्द शब्द पढ़ लेता था

मैं शब्द शब्द पढ़ लेता था

2 mins
292

मैं शब्द शब्द पढ़ लेता था

पर जज्बातों को न छूता था,

मेरे  जैसे   वो भी हैं

उनको मैं कह लेता  था,

उनको शिकायत ये थी कि

पास हूँ पर मैं पास नहीं हूँ,

साथ हूँ रहता रात और दिन

साथ हूँ उनके साथ नहीं हूँ।

उनका दिल और अपनी धड़कन

साथ साथ बुन लेता था,

मैं शब्द शब्द पढ़ लेता था

पर जज्बातों को न छूता था।


मेरे  जैसे  वो  भी  हैं

उनको मैं कह लेता था,

उनको शिकायत ये थी कि

पास हूँ पर मैं पास नहीं हूँ,

साथ हूँ रहता रात और दिन

साथ हूँ उनके साथ नहीं हूँ।

उनका दिल और अपनी धड़कन

साथ साथ बुन लेता था

मैं शब्द शब्द पढ़ लेता था

पर जज्बातों को न छूता था।


होठों पर हूँ स्वाद नहीं हूँ

पलकों पर हूँ ख्वाब नहीं हूँ,

लम्हों लम्हों से मिलता हूँ

लम्हों से अनजान नहीं हूँ,

हर लम्हा मैं उनका कलमा

सुबह शाम पढ़ लेता था,

बन के लकीरें हाथों  की

माथे  को छू लेता था,

मैं शब्द शब्द पढ़ लेता था

पर जज्बातों को न छूता था।


एक दिन मुझसे बोल पड़ी

शब्दों का न ज्ञान मुझे,

कितना मूरख है तू गुमशुद

इंसानों से क्या काम मुझे,

मुझको क्यों तू पढ़ता है

खुद को भी तो पढ़ खुद से,

जीत का इतना शौक है तो

कभी कभी तो लड़ खुद से,

जब वो चिल्लाती थी मुझपे

खुद को कतरा कतरा कर लेता था,

मैं शब्द शब्द पढ़ लेता था

पर जज्बातों को न छूता था।


कभी कह कोई नयी रवायत भी

यूँ इंसान को पढ़ने से क्या होगा ।



Rate this content
Log in