मैं पंकज हूँ
मैं पंकज हूँ
सब समझे हैं मैं बीत गया, पर मैं फिर लौट कर आऊँगा
है प्रभात नाम मेरा, मैं फिर से नभ पर छाऊंगा।
वक़्त की अँधयारी चादर में कुछ पल छिप गया हूँ,
इस बेरंगी चादर पर मैं सफल इतिहास लिख जाऊंगा।
सब समझे हैं मैं बीत गया, पर मैं फिर लौट कर आऊँगा।
मेरे प्राण में प्रण अभी शेष है,मेरे गुण धर्म विशेष हैं,
मैं पंकज हूँ मुरझाता नही, मेरे बीज मेरे ही अवशेष हैं।
मैं शीतल हूँ पर सर्द नही, मेरी नियति उन्मत दर्द नही,
मैं खुशबू हूँ कभी मिटता नही, मैं फिर से खिल जाऊंगा।
सब समझे हैं मैं बीत गया, पर मैं फिर लौट कर आऊँगा
मेरी प्रकृति कुछ विशिष्ठ है, मेरा संयम मेरा शिष्ठ है,
मेरी क्षमता उत्कृष्ट है, मेरी सार्थकता अभी भी बलिष्ठ हैं।
मेरी आभा मंजू है मैं भिन्न हूँ, सकारात्मकता का बिपिन हूँ,
मैं शब्द हूँ मैं स्याही भी, हर पूर्णविराम से नया छंद बन जाऊंगा।
सब समझे हैं मैं बीत गया, पर मैं फिर लौट कर आऊँगा।